अरे भाई लोग, कल रात को दोस्तों के साथ थिएटर पहुँचा 'मस्ती ४' देखने – वाह रे नॉस्टैल्जिया! याद है वो २००४ वाली 'मस्ती' जब हम कॉलेज में बंक मारके देखने जाते थे, हँस-हँस के पेट दुख जाता था। अब तो सब शादी-शुदा हो गए, बच्चे भी हैं, लेकिन मस्ती का कीड़ा अब भी कचोटता है। तो चलो, सीधा रिव्यू पर आते हैं – मेरा ईमानदार टेक, बिल्कुल देसी स्टाइल में, क्योंकि ये फिल्म भी तो देसी मसाला ही है ना!
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पहला इम्प्रेशन: ट्रेलर ने धोखा दिया, लेकिन फिल्म ने हँसाया!ट्रेलर देखा था ना? बिल्कुल फ्लैट, जैसे कोई अंकल जी की बोरिंग शादी की वीडियो। लोग चिल्ला रहे थे, "ये क्या बकवास है, पुराने जोक्स रिसाइकल कर रहे हैं।" लेकिन भाई, थिएटर में जाकर देखा तो अलग ही बात! स्टार्टिंग से ही धमाका – विवेक ओबेरॉय, रितेश देशमुख और आफताब शिवदासनी वापस आ गए अपने सिग्नेचर स्टाइल में। ये तीनों अब अंकल बन चुके हैं (हेयरलाइन तो गई हाथ साफ!), लेकिन एनर्जी? फुल-ऑन रॉकेट मोड! जैसे वो बोल रहे हों, "भाई, हम नहीं बदले, दुनिया बदल गई!" प्लॉट? सिंपल सा है – ये तीनों अब मिडिल-एज्ड हसबैंड्स हैं, लाइफ में बोर हो गए। बीवियाँ (नरगिस फखरी, एलनाज़ नोरोज़ी और बाकी लड़कियाँ) उन्हें लाइन पर रख रही हैं, और वो लोग 'हानिकारक मस्ती' करने निकलते हैं। लेकिन जैसे हमेशा होता है, एक छोटी सी गलती से पूरा तमाशा शुरू – फेक आइडेंटिटीज़, मिसअंडरस्टैंडिंग्स, और वो क्लासिक एडल्ट जोक्स जो सीधे पेट पर लगते हैं। एक सीन में रितेश एक 'जानवरों का वायग्रा' बना रहा है, और विवेक बोलता है "मास्टर-बेटर हूँ मैं!" – हँसी रोकनी मुश्किल! हाँ, कुछ लोग बोलेंगे क्रिंज है, लेकिन अगर आप 'ग्रैंड मस्ती' के फैन हो, तो ये आपका टाइप है।क्या अच्छा लगा? (द मस्ती मोमेंट्स)कॉमेडी का डोज़: स्लैपस्टिक फुल-ऑन! अरशद वारसी का कैमियो? वाह यार, वो 'लव वीज़ा' वाला सेगमेंट देख के हॉल में तालियाँ बजीं। तुषार कपूर भी साइड में आ गया, जैसे बोनस ट्रीट। पन-फिल्ड डायलॉग्स – लोब्रो, लेकिन इफेक्टिव। एक जगह आफताब बोलता है, "शादी में मस्ती खत्म, अब तो सिर्फ ईएमआई की मस्ती!" – रिलेटेबल एएफ फॉर अस मैरिड फोल्क्स।
कास्ट केमिस्ट्री: ये तीनों की जोड़ी अब भी गोल्ड है। रितेश की टाइमिंग, विवेक की ओवरएक्टिंग, आफताब की इनोसेंट वाली नौटंकी – परफेक्ट कॉम्बो। लड़कियाँ भी इस बार स्ट्रॉन्ग हैं, उनका 'रिवेंज मस्ती' ट्रैक ट्विस्ट देता है।
बीजीएम और सॉन्ग्स: बैकग्राउंड स्कोर लाउड है, लेकिन फन। एक आइटम सॉन्ग है जो थिएटर में सबको नचा देता है। नॉस्टैल्जिया फैक्टर हाई – पुरानी फिल्मों के रेफरेंस डाले हैं, हँसी डबल हो जाती है। 'रसिया बालामा' और 'पकड़ पकड़' जैसे ट्रैक्स क्लासिक हिंदी फिल्म एज देते हैं।
अगर आपको २-३ दिन की टेंशन रिलीज़ चाहिए, ये फिल्म परफेक्ट है। वीकेंड पर पॉपकॉर्न लेकर जाओ, सोचना मत!क्या खराब? (द क्रिंज अलर्ट ज़ोन्स)हाँ भाई, परफेक्ट नहीं है। कुछ जोक्स बिल्कुल आउटडेटेड लगते हैं – पॉटी-सूसू टाइप, जो २००४ में ठीक थे, अब २०२५ में 'रियली?' वाला फील देते हैं। डायरेक्टर मिलाप ज़वेरि ने ट्राई किया इवॉल्व करने का, लेकिन कहीं-कहीं लेज़ी लगता है। एनर्जी बीच में लो हो जाती है, जैसे बैटरी खत्म। और हाँ, अगर आप फैमिली के साथ जा रहे हो, तो बच्चों को घर पर छोड़ो – एडल्ट कॉमेडी है, फिल्टर ज़ीरो! कुछ रिव्यूज़ में तो इसे 'डिस्गस्टिंग एंड चीप' तक बोल दिया गया है, लेकिन मैं कहता हूँ, अगर लोब्रो ह्यूमर पसंद है तो ठीक।ओवरऑल, ये फिल्म उन लोगों के लिए है जो 'ग्रैंड मस्ती' को ५-स्टार देते थे। क्रिटिक्स बोल रहे हैं २.५/५, लेकिन मैं देता हूँ ३/५ – क्योंकि मस्ती तो मस्ती है, हँसी तो आई ना!
koimoi.com +1
बॉक्स ऑफिस पर '१२० बहादुर' से क्लैश, लेकिन ये कॉमेडी वाला वीकेंड जीत लेगी।तुम लोगों ने देखी? कमेंट में बताओ, क्या लगा? नेक्स्ट टाइम मिलते हैं किसी और ब्लास्ट के साथ। मस्ती ऑन!

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